जस्सा सिंह रामगढ़िया .

एक समय पंज-आब में जु़ल्म की आंँधी आई थी 

बुझे-बुझे से दीप थे सारे,हर तरफ़ वीरानी छाई थी ।।


मजबूरी थी,ज़ंजीरें थी,गुम हुई खुशहाली थी

मीर मनु के जु़ल्मों से फैल रही बदहाली थी ।।


अहमद शाह अब्दाली ने जब मज़लूमों पर ज़ुल्म किए

सहमी सहमी थी सब आंखें सबके दिल रंजूर हुए ।।


हर जुबांँ पर बात यही थी कोई तो ऐसा आएगा 

लाचारी की ज़ंजीरों से आकर हमें छुड़वाएगा ।।


जुल्म मिटाने का अरमाँ दिल में लेकर  आया था 

जस्सा सिंह रामगढ़िया इक जोश का तूफ़ाँ लाया था ।।


उसकी हिम्मत और दलेरी के हर तरफ़ ही चर्चे थे 

 देखकर रौबीली आंँखे  दुशमन उससे डरते थे ।।


देखकर योद्धा को मैदान-ए-जंग में मौत भी घबरा जाती थी

जिसके आगे भारी-भरकम फौज़ भी रुक ना पाती थी ।।

 

बिजली सी शमशीर हवा में जिस दम भी लहराई थी 

क्या कहने उस मंज़र के ज़ालिम ने मुंँह की खाई थी ।।


जिसके आगे बड़े-बड़े भी अपनी हिम्मत तोड़ गए 

भाग उठे मैदान-ए-जंग से, सब अपने शस्त्र छोड़ गए ।।


जिसकी निडरता को सुनकर मज़लूम भी दिलदार बने

जस्सा सिंह वीर बहादुर सिखों के सरदार बने ।।


रामरौणी की जगह पे उसने रामगढ़ किला बनाया था

जस्सा सिंह रामगढ़िया हर इक दिल पे छाया था ।।


हम ही नहीं कहते सारा आलम 'फ़लक' यह कहता है 

जस्सा सिंह तो आज भी सबकी रूह में ज़िन्दा में रहता है ।।

                                         जसप्रीत कौर फ़लक