धरा.. गगन.. प्रकृति .
ग्रीष्म की तपती धरा पर,
गगन जब अगन बरसाये,
गरम हवाओं के झोंकों से,
सारा आलम झुलसा जाये,
तब…
चटक लाल खिलें गुलमोहर,
देखें गगन ओर,मुसकायें।
संग धरा वह करें तपस्या,
अवनी को ढाढ़स बँधवायें।
खिलें अमलतास पूरी बहार से,
खिलकर वंदनवार सजायें।
सूरजमुखी अपने रंगों से
देखें,हँसे और हरषायें।
तब..
देख तपस्या अवनी की
अश्रु भर आयेंगे गगन नयन,
अमीरस बरसेगा, तृप्त धरा,
मिट्टी की सौंधी महक से
खिल उठेंगे मन आँगन,
हे मानव, तुम हर पीड़ा में
अन्तर्मन से ज़िंदा रहना,
दिन बदलेंगे,हल निकलेंगे,
धरा,गगन,प्रकृति सिखाये।
- डॉ.सुमन शर्मा