फिर कलम उठाई / शैली वाधवा.

 


आज फिर से मैंने कलम उठाई,

सुनके दास्तां किसी की आंख भर आई।

मसरूफ हो गया था मैं, खुद को समाज करने में,

दिल बोहत टूटा था उसका इलाज करने में,

कहानी शायद यह मेरी थी,

जो उसकी ज़ुबां पे आई ।

आज फिर से मैंने कलम उठाई...

नागवार गुज़री कुछ लोगों को सच्ची सच्ची बात,

लो करना सीख गया मैं भी अच्छी अच्छी बात,

दहक उठी किसी की बात से जो चिंगारी थी दबाई।

आज फिर से मैंने कलम उठाई..

 नामंजूर था दिल को फिर तेरी गली जाना

क्या मंजूर था किस्मत को फिर मुझ को आजमाना

तोड़ दी फिर से वो कसम जो खुदा के नाम पे थी खाई

 

                    - शैली वाधवा