बरकत / शैली वाधवा.

बरकत
बरकत भर दे मेरी कलम में इतनी,
लिखूंँ खुशी तो चेहरे खिल जाएंँ...
ताकत भर दे मेरे ज़ेहन में इतनी,
लिखूंँ रौशनी तो दिए जल जाएंँ...

बन जाऊंँ वो मरहम, 
जो हर दर्द दे मिटा,
बन जाऊंँ वो उम्मीद, 
जो दे जीने की वजह...
लिखूंँ बहार तो फूल खिल जाएंँ,
लिखूंँ रौशनी तो दिए जल जाएंँ....

बन जाऊंँ वो सहारा, 
जो ता-उम्र साथ निभा दे...

बन जाऊंँ वो ज़ज्बा, जो किसी 
गिरते हुए को उठा दे...
लिखूंँ रौनक तो महफिल सज जाए,
लिखूंँ रौशनी तो दीये जल जाएंँ...।
              शैली वाधवा.