*प्यार* / *सारा सैफी*.
सच्चा है बस इक माँ का और दूजा रब का प्यार
वर्ना दुनिया में है यारों सब मतलब का प्यार।।
मिल ना पायेगा महफिल में उसे अदब का प्यार
जिसने समझा दीन-धर्म का या मज़हब का प्यार।।
जिसने नफरत पाली उसको बस नफरत मिल पाई
मैनें सबसे प्यार किया और पाया सबका प्यार।।
मिटा ली अपनी हस्ती जिनकी ख़ातिर उल्फ़त में
मिटा चुके हैं अपने दिल से वो तो कब का प्यार।।
आँधी और तूफाँ मिलकर भी जुदा कभी न कर पाये
फूल से तितली का देखा है एक ग़ज़ब का प्यार ।।