हम भी शायर* / *सारा सैफी*.

 

हम भी कुछ अश्आर लिखेंगे

रेल को चाहे  कार   लिखेंगे।।


कानाफूसी करेंगे बहरे

अँधे भी दीदार लिखेंगे।।


ज़ख़्म भरें या फूटें छाले

मरहम को तलवार लिखेंगे।।


आग लिखेंगे गुलशन को हम

शो'लों को गुलज़ार लिखेंगे।।


हम सादा दिल हिंदुस्तानी

दुश्मन को भी यार लिखेंगे।।


हमको भी बनना है शायर 

यूँ ग़ज़लें दो चार लिखेंगे।।


ऐसे हम अन्जान अदब से

‘ग़ालिब' को ‘ग़ुलज़ार' लिखेंगे।।


लिखना चाहे कुछ न आए

दिन में सत्तर बार लिखेंगे।।