किसे पता है... .

किसे पता है हम अपने दिल में

कितना दर्द छुपाए बैठे हैं

सीने में कितने दुख रखे हैं

बस सभी से पर्दा किए बैठे हैं

कोई ना जान सके कितना दर्द 

हम दिल में दबाकर रहते हैं

मुनासिब हूं मैं इस जग से भी

सब हैं सिर्फ नसीहत देने वाले 

दुखती रग को हैं ये और दबाते

होते हैं ये जले पर नमक छिड़कने वाले

मेरी बातों से ना समझेगा कोई

मेरी स्थिति क्या है कोई ना जान पाएगा

बयां जो मै करना चाहूं 

उसे ही शब्दों में लिख दिया

इस दर्द को कोई समझ पाए इसलिए

अपना दर्द कुछ शब्दों में बयां किया

                                            - अनमोल सियाल