क्षमता और शुरुआत : मेहनत की पहली बारिश.
"क्षमता �"र शुरुआत मेहनत की पहली बारिश है, मौसम बनने में तो महीनों लग जाते हैं फिर बारिश होती है। इसका मतलब यह नहीं कि हम मेहनत करना छोड़ दें फिर जब बादल बन जाएंगे हमारी सफलता के तो बारिश अवश्य होगी"।
किसान धरती के सीने पर हल चलाता है उसमें बीज बोता है �"र फिर अच्छे मौसम के लिए दुआ करता है। कुदरत उसका साथ देती है। उसकी फसल के अनुकूल उसे माहौल प्रदान करती है। वातावरण पैदा करती है।सर्दी-गर्मी �"र वर्षा से नवाज की है �"र फिर एक दिन धरती सोना उप जाती है, जिसे देख कर वह खुश होता है यह फसल सिर्फ उसका �"र उसके परिवार के लिए उपयोगी सिद्ध नहीं होती बल्कि धरती पर विचरने वाले सभी प्राणियों, जीव- जन्तु�"ं, पशु-पक्षियों का पोषण भी करती है। केवल किसान की मेहनत से धरती पर चढ़ने वाले प्राणियों का जीवन सुखी हो जाता है। उसकी मेहनत सारे संसार को जीवन प्रदान करती है, जो कोई जीव मेहनत करता है कुदरत उस का साथ देती है। मकड़ी बार-बार दीवार से गिरने पर भी जाला बना ही लेती है। जैसे पंछी तिनका- तिनका इकट्ठा करके घोंसला बना लेते हैं। चींटी अपने श्रम से अपनी मंजिल की �"र अग्रसर हो जाती है। यह परिश्रम ही तो है जो हमें सफलता प्रदान करता है �"र जीवन में खुशियाँ लाता है।
"परिश्रम वो श्रम बिंदु है जहांँ पसीने की बूंद गिराता है
वहाँ सुन्दर फूल खिल उठते हैं
जो देते हैं मधुर सुगन्ध
क्योंकि;
ऐसे फूल परिश्रम की मिट्टी पर ही खिलते हैं "।
श्रमजीवी के शरीर से निकलने वाला पसीना ही संसार का पोषण करता है �"र जीवन जीने की लालसा पैदा करता है।
"व्यर्थ नहीं जाता मेहनत का पसीना
अंकुर फूटने में देर भले हो जाए
एक ना एक रोज सुनवाई होगी श्रम की
चाहे कुछ देर भले हो जाए "।
यदि हम मेहनत करते हैं �"र साथ में दुआ भी तो कुदरत बेरहम नहीं होती कि हमारी प्रार्थना, हमारी अरदास ना सुने । यदि इस विषय को मैं अपनी कविता में कहूंँ तो यह इस प्रकार होगा-
कुदरत
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कुदरत कभी बेरहम नहीं होती
कि दुआ के लिए कोई हाथ उठे
�"र दुआ क़बूल न हो
प्यासी धरती को पानी न मिले
सूखी टहनियों पर अंकुर न फूटे
ज़ख़्मों को दवा न मिले
कुदरत कभी बेरहम नहीं होती
कि दुआ के लिए कोई हाथ उठे
�"र दुआ क़बूल न हो
हर किसी के सीने में छुपा हुआ है
कोई न कोई क्षमता का बीज
उंगलियों में पनपता है जीने का हुनर
आँखों में ठहरी है,जीवन की चमक
हर किसी के सीने में छुपा हुआ है
कोई न कोई क्षमता का बीज
चाहिए सच की मिट्टी, लक्ष्य पर निगाह
मेहनत का पानी, दुआ की हवा
धैर्य की धूप �"र उम्मीद की छाँव
हाँ;
श्रम के पेड़ पर फूल, फल लगते हैं
लेकिन समय आने पर...
कुदरत कभी बेरहम नहीं होती
कि दुआ के लिए कोई हाथ उठे
�"र दुआ क़बूल न हो ।
जसप्रीत कौर फ़लक
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