महाभारत.
ये कथा है,
धर्म के व्याख्यान की,
नारी के सम्मान की,
सत्य के मार्ग की,
त्याग और बलिदान की,
कृष्णावतार की,
कौरवों के अहंकार की,
पांडवों के मान की,
संसार के कल्याण की।
जिसमें,
छल भी था,
कपट भी था,
सत्य भी था,
असत्य भी था,
धर्म भी था,
अधर्म भी था।
बीच सभा में किया था,
दुर्योधन ने अपमान द्रौपदी का,
जहां थे मौजूद,
महावीर,महारथी पांच पांडव पुत्र,
गंगापुत्र भीष्म पितामह,
गुरु द्रोणाचार्य,
सूर्यपुत्र कर्ण,
महाराज धृतराष्ट्र,
विधुर तथा संजय,
और ज्ञानी ऋषि मुनि।
मगर जाने क्यों,
किसी ने एक आवाज ना उठाई,
नारी सम्मान बचाने को,
सभी रहे मोन,
उस सभा में।
कोई था अपने वचनों से बंधा,
तो कोई अपने कर्तव्यों से।
कोई था अपने ही धर्म सिद्धांतों से बंधा,
तो कोई क्रोध और प्रतिशोध से भरा।
मगर किसी ने नारी सम्मान को बचाने का प्रयास न किया।
जब लगा दुशासन करने चीर हरण,
पांचाली ने हृदय में,
अपने प्रिय सखा और भगवान श्री कृष्ण का नाम पुकारा।
सुनकर पुकार श्री कृष्ण ने,
अपनी प्रिय सखी की लाज बचाई।
इस अपमान की अग्नि में,
कौरवों का पूरा वंश जला,
जो भी रहे थे मोन सभा में,
युद्ध में उनको दंड मिला।
श्री कृष्ण से गीता का ज्ञान मिला,
अर्जुन को जीवन का रहस्य मिला,
भीष्म पितामह को धर्म का असल सिद्धांत मिला,
सूर्यपुत्र कर्ण को,
अपनी माता कुंती तथा श्री कृष्ण का प्रेम मिला,
पांचाली को अपना सम्मान मिला,
गुरु द्रोणाचार्य को गुरु गुण का वास्तविक ज्ञान मिला,
पांडव पुत्रों को अपना मान मिला,
संसार को श्री कृष्ण के द्वारा,
कल्याण मिला।
नारी के सम्मान को,
धर्म की मर्यादा को,
जब - जब चोट पहुंचेगी,
तब - तब उसकी रक्षा की खातिर,
एक महाभारत होगा।
महाभारत ना केवल रिश्तों की कड़वाहट को प्रगट करता है,
अपितु समझता है की रिश्तों को कैसे निभाया जाए,
असल मायनों में धर्म क्या है,
नारी सम्मान क्या है,
प्रेम क्या है,
रीति रिवाज का क्या अर्थ है,
उसे कब बदलना चाहिए,
अपने सिद्धांतों को कब दूसरों के हित की रक्षा के लिए तोड़ना चाहिए,
हमें अपने बोल पर कैसे नियंत्रण रखना चाहिए,
हमें किस की सलाह माननी चाहिए और
किस की नहीं,
महाभारत जीवन के उतार चढ़ाव को दर्शाता है,
धर्म के मार्ग पर चलने का पथ बताता है।
दीपक ठाकुर