ग़ज़ल / शीबा सैफी .

उस्ताद-ओ-शागिर्द का रब ने वो रिश्ता बना दिया 

रिश्तों  को  सारे  जिस  ने  शिकस्ता  बना  दिया ।।


मिलते नहीं हैं लफ्ज़ भी अज़मत के आपकी 

मिट्टी के बुत को तुमने फ़रिश्ता बना दिया ।।


दौलत से ख़ास इल्म की मुझको नवाज़ कर

गुलशन का कोई फूल शगुफ़्ता बना दिया।।


सीने में  भर के  आपने  तालीम  के  गौहर

 सख़्त  दिल  को  मेरे  शाइस्ता बना दिया।।


दस्ते  करम  सर  पे  है  जो  आपका  मेरे

‘शीबा' मेरे वुजूद को पुख़्ता बना दिया।।


~शीबा सैफी