कविता / बेमतलब बातें / शैली वाधवा.

 

बेमतलब सी कुछ बातें तुमसे करना है ज़रूरी,

बेवजा सा आज यूहीं तुमसे मिलना है ज़रूरी

एक अरसा सा हो गया था,

खुद से मिले, बात किए हुए जैसे,

देखता हूं रोज़ आइना अब..

तुमसे कहना है ज़रूरी

बेमतलब सी कुछ बातें...

 

भागा फिरता हूं दिनभर दिमाग़ के कहने पे इधर-उधर

तुम्हें देखा तो लगा...

कि दिल की बात भी अब सुनना है ज़रूरी

बेमतलब सी कुछ बातें....

 

कहने को तो मैं कह भी दूं,

कि नहीं मुमकिन अब गुज़ारा तेरे बिना,

मगर दुनियादारी का लिहा़ज भी कुछ रखना है ज़रूरी

बेमतलब सी कुछ बातें..

 

मैं तो तुम्हारे कहने भर से निभा लूंगा अदब सारे,

तुम्हारा भी मगर मेरा ख्याल रखना है ज़रूरी

बेमतलब सी कुछ बातें.....