ग़ज़ल /मनोज धीमान .

पत्रकारिता के क्षेत्र में करीब तीन दशकों तक अपने हुनर से पाठकों के बीच एक अलग पैंठ बनाने वाले मनोज धीमान ने साहित्य के क्षेत्र में '*लेट नाईट पार्टी* (कथा संग्रह), *बारिश की बूँदें* (काव्य संग्रह) तथा *शून्य की �"र*  (shuney ki or) (उपन्यास) के साथ दस्तक दी थी। अभी पिछले दिनों जब फेसबुक पर निरंतर उनकी लघु कथाएं पढीं तो उनकी घटनाओं तथा संवेदनशील मुद्दों को रौचकता के साथ पेश करने  की क्षमता का पता चला। अब ग़ज़ल विधा में उनकी भावनाओं का साक्षात भी होगा।

मनोज धीमान की ताज़ा ग़ज़ल पेश करने का सौभाग्य ले रहे *ज़िक्र पंजाब* का 

मानना है कि ग़ज़ल के क्षेत्र में भी मनोज नए आयाम छूएंगे।।।। आमीन!! 

 

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हम ही थे जो तुम से मोहब्बत करते थे

चाहते तो हम भी काफ़िला लूट सकते थे


हम उन जैसे न थे, न हैं, न बन सकेंगे कभी 

वर्ना हम भी सफेदपोश बन कर लूट सकते थे


गर खूबियां उनमें हैं बहुत, कम हम भी नहीं

लुटेरे हैं वो अगर, हम भी उन्हें लूट सकते थे


झुकी निगाहों को हमारी कमजोरी मत समझो

लूटा नहीं, चाहते गर तो कभी भी लूट सकते थे

 

नज़दीकियां तो बहुत रही हमारी तुम्हारी

ख़ुद ही जो लुट गए वो हमें क्या लूट सकते थे

 

चलो छोड़ो अब ये लूटने लुटाने की बातें 

लुट गए अब तो जितना तुम लूट सकते थे


-मनोज धीमान।