ग़ज़ल /अश्विनी जेतली .
दिल में जितना दर्द छुपाया
अश्कों में इक दिन बह आया
ये तो बता ऐ मेरे खुदाया
मुझ पर ही क्यूँ ग़म बरपाया
दे कर छीन लिया सब तूने
क्या था मेरा दोष खुदाया
सूरज, चंदा, तारा है वो
जिसने तेरा घर रौशनाया
लेकिन बेटी वो देवी है
जिसने कुल का मान बढ़ाया
बेरोज़गारी, भूखमरी ने
कहर शहर में कितना ढाया
प्रजा भूख प्यास से तडपी
राजा को पर रहम ना आया
प्यास बुझी सूखी थरती की
शिव शंभू ने शंख बजाया
शहर में क्यूँ इतना सन्नाटा
चोर ने डर कर शोर मचाया
इक अंधे ने आज रात को
सूरज को दीया दिखलाया