कविता / ज़िन्दगी भी कमाल है / आकाश ठाकुर .
जिंदगी भी कमाल है न जनाब !
रास्ते में न जाने कैसे मोड़ देती है
कुएं में उतार देती है मुसाफ़िर को
कमबख्त हंँस के फ़िर रस्सी छोड़ देती है...
आरज़ू है हमारी की खुल के जिया जाए
मुसाफ़िर थक चुका है चलकर, थोड़ा पानी पिया जाए
लेकिन हालात को शायद नामंजूर थी नादानी हमारी
कयामत भी आ जाती है अक्सर ये कहकर, कि चलो थोड़ा मज़ा ही लिया जाए...
लेकिन मेरे हौसलें बुलंद हैं और सोच आसमान सी है
पैर हैं जमीं पर लेकिन इनमें ताकत उड़ान सी है
इरादे हैं तेज तीर से,और कोशिशें कमान सी है
हवाएं भी हैं साथ मेरे अब तो , क्यूंकि गति अब विमान सी है...
जानता हूंँ ;
मुशिकलें आएंगीं हज़ार लेकिन कदमों को रुकने नहीं दूंँगा
कटवा दूंँगा सिर लेकिन गलत जगह झुकने नहीं दूंँगा
और यकीन है मुझे;
कि इक दिन यह कागज सा आसमान भी कम पड़ जाएगा
जिस दिन इस कलम से ज़िन्दगी का सच लिखा जाएगा...।
- आकाश ठाकुर