कविता / मुस्कुराता हूँ मैं /आकाश ठाकुर .

होंठ करवट लेकर जब मुस्कुरा दिया करते हैं

दिल में राज़ है या साजिश कोई ,बता दिया करते हैं

हालात कितने भी बुरे क्यों न हो, फर्क नहीं पड़ता

कुछ विजेता एक मुस्कुराहट से ही उन्हें हरा दिया करते हैं...


वो दादी की झुर्रियों को भी जुल्फों सा लहरा दिया करती हैं

मुझे देखकर अक्सर दादी मुस्कुरा दिया करती है

और बता दिया करती है मेरे हिचकियां मेरे दिल को 

जब भी वो मुझे, हर बार की तरह दिल से याद किया करती हैं...


जिंदगी यूं ही बीत जाएगी , सब कल की ही तो बात है

पता नहीं कौन सी रात अपनी आखिरी रात है

खिला सा चेहरा लेकर चलो हमेशा , मुस्कुराते हुए

कविता नहीं हूं लिख रहा,सब दिल के जज्बात हैं...


हालातों ने कई बार गिराया है मुझे 

राजनीति कर के भी किस्मत ने हराया है मुझे 

तो क्या मैं टूट के बैठ जाऊं कोने में किसी!

बिल्कुल नहीं,

मुस्कुरा के फिर उठ के चलना मेरी मां ने सिखाया है मुझे...


कभी शुक्रगुजार होता हूं, कभी करता हूं शिकायत मैं

सम्भल कर चलता हूं ,देता हूं खुद को हिदायत मैं

लेकिन फिर कोई अजनबी जब दिल में आकर दिल ही  ले जाता है कभी,

ज़ख्म हो जाते हैं हरे सब और फिर भी मुस्कुराता हूं मैं...।

                                 - आकाश ठाकुर