ग़ज़ल / गुरवीर स्याण.

हर ज़र्रा गुलों की तरह महकाया नहीं होता 

ज़रा सा मुस्कुराने में वक्त ज़ाया नहीं होता 


दोस्ती उजालों से भी रख,न कर अदावत अंधेरों से 

कई दफा मुसीबत में साथ साया नहीं होता 


ज़रा लहज़े में शामिल कर अपनापन थोड़ा 

हर किसी मरने वाले ने ज़हर खाया नहीं होता 


हर अपराध करने वाला भी अपराधी नहीं होता 

किसी ने अच्छा बुरा उसको समझाया नहीं होता 


इंसान पुतला है गलतियों का, बे-ऐब है कौन यहाँ 

हर कोई फलक से भी तो आया नहीं होता 


हर ज़र्रा गुलों की तरह महकाया नहीं होता 

ज़रा सा मुस्कुराने में वक्त ज़ाया नहीं होता 


  - - गुरवीर सिआण - -