कविता / सारस्वत / राजू जेटली "ओम" .

 


हम उन ऋषियों के वंशज हैं,

जो भारतवर्ष की आधार शिला,

जिनके तप-त्याग से ही सबको,

ये सुंदर सुखी संसार मिला l


हम सरस्वती तटों पर रहने वाले,

हम श्रेष्ठधर्म कल्पना करने वाले,

हम चिंतन-मनन करने वाले,

हम वेदों की रचना करने वाले l


हम ज्ञान शिक्षा अर्पण करने वाले,

हम विद्या को वंदन करने वाले,

हम भिक्षा से जीवन यापन करने वाले,

हम निर्धनता में स्वाभिमान पाने वाले l


हम गाय को गौमाता कहने वाले,

हम नदियों को माँ का दर्जा देने वाले,

हम नागों की पूजा करने वाले,

हम पीपल को जल चढ़ाने वाले l


हम माथे तिलक लगाने वाले,

हम काँधे जनेऊ पहनने वाले,

हम सर पर शिखा सजाने वाले,

हम शांती पाठ पढ़ाने वाले l


हम रण में शंख बजाने वाले,

हम वीरों को शस्त्र ज्ञान देने वाले,

हम शूरों में आवेग भरने वाले,

हम धनुषों में टंकार करने वाले l


हम सिंघों को मुकुट पहनाने वाले,

हम योद्धाओं को सम्राट बनाने वाले,

हम स्वयं फरसा उठाने वाले,

हम मानव धर्म निभाने वाले l


हम पंजाती, हम सारस्वत कहलाने वाले,

हम ईश को शीश झुकाने वाले,

हम स्वाभिमान से जीने वाले,

हम राष्ट्र प्रेम में मरने वाले l


राजू जेटली "ओम"