कविता / कपड़े और रिश्ते / राजू जेटली *ओम*.

 

रिश्ते भी कपड़ों की मानिंद फटते उधड़ते रहते हैं,

कभी रफ़ू कभी सिलाई तो कभी तुरपाई चाहते हैं l


दोनों ही बड़े एहतियात से बुने, बांधे और जोड़े जाते हैं,

एक में धागे तो दूजे में जज़बात के ताने बाने पाये जाते हैं l


कपड़ों को 'प्रेस' करो तो बड़े सलीके से वो रहते हैं,

गर्माहट से ही तो रिश्ते भी खूब सहेजे जाते हैं l


गुत्थमगुत्था कपड़ों में अमूमन बल पड़ जाते हैं,

यही वजह कुछ रिश्तों में ज़रा फ़ासले रखे जाते हैं l


बंद कपड़ों में 'नेफथैलीन' की  गोली रखना याद रख पाते हैं,

दूर हुए कुछ रिश्तों में खुशबू भरना जाने क्यों भूल जाते हैं l


रिश्तों और कपड़ों में कुछ फ़र्क़ भी पाये जाते हैं,

कपड़े अलमारी में और रिश्ते दिल में रखे जाते हैं l


कपडों को न पहनो तो वो चुपचाप पड़े रह जाते हैं,

पर रिश्तों में अनदेखी के शिकवे किये जाते हैं l


कपड़े पुराने हो जाएं तो औरों को दे दिए जाते हैं,

पर रिश्ते तो ता-उम्र एहसासों में संजोये जाते हैं l


राजू जेटली "ओम"