ग़ज़ल /अश्विनी जेतली .

 


कभी फूलों सी खिलती है कभी पत्तों सी झरती है

सजन की याद इस दिल में अजब से रंग भरती है


चली आती है उनकी याद अक्सर दिल के आंगन में 

कभी खुशबू तो कभी चांदनी बन कर बिखरती है


ज़माने भर के ग़म, दुख-दर्द, लाचारी मेरे हिस्से

खुशी सपने में ही अब तो सिर्फ मेरे आया करती है


उठाया सर है जिस जांबाज़ ने भी ज़ुल्म के आगे

झुका कर सर ये दुनिया फिर उसी को सजदा करती है


रंग कितने है दिखलाती हमें हर बार किस्मत यूँ 

कभी बन कर बिगड़ जाए कभी बिगड़ी संवरती है