ग़ज़ल / अश्विनी 'प्रेम' जेटली A Ghazal Penned by Ashvani 'Prem' Jaitly.

उसके जाने का बस इतना सा मलाल रहता है

कि अब हर वक़्त सिर्फ उसका खयाल रहता है

कहां जाऊँ जवाब ढूँढने उसका बता�""अब

ज़ेहन में दौड़ता जो सरपट इक सवाल रहता है

चले भी आ�" कि कहीं भी गया नहीं है अभी

दीवाना इंतजार में यहीं बहरहाल रहता है

उसका अंदाज़ निराला है ख़फ़ा होने का 'प्रेम'

ख़फ़ा भी हो चाहे, चेहरे पे जमाल रहता है

�"रों का दर्द बांट कर वो थका नहीं कभी

स्वयं ग़मों से 'जेतली' बेशक निढाल रहता है