मन के मधुबन में आ जाओ / अश्विनी जेतली 'प्रेम'.
मन के मधुबन में आ जाओ चुपके से तुम
आकर सपनों को महकाओ चुपके से तुम
कई बरस से रहे तरस हैं कान मेरे
कान्हा मुरली तान सुनाओ चुपके से तुम
हर इक बात तुम्हारी मानी, लेकिन अब
बात मेरी इक मान भी जाओ चुपके से तुम
दूर दूर अब रहना छोड़ो, बहुत हुआ
'उर' पुर में अब आन समाओ चुपके से तुम
हमसफ़र हमराज़ बनो, ना बनो सितमगर
दीवाने पर सितम ना ढाओ चुपके से तुम
या तो 'प्रेम' से पास बुला लो मुझे ही अब
या फिर पास मेरे आ जाओ चुपके से तुम