GHAZAL BY SHEEBA SAIFI.

शजर की शाख़ को इक हसीं मंज़र बनाता है

तिनके जोड़ कर जब इक परिन्दा घर बनाता है


बसर करने को अपनी ज़िन्दगी ऐसा भी करतेेे हैं

कोई मरहम बनाता है कोई खन्ज़र बनाता है


गुज़ारा कर रहा है बरसों से इक टूटी चटाई पे

वो मेरे शहर में जो मख़मली बिस्तर बनाता है


करम हो जिस पे रब का और इनायत उस पे हो जाए

तो फिर राहों के पत्थर को भी वो गौहर बनाता है


हसद,कीना,बुरी बातों से जो दिल को साफ रखता है

तो ऐसी शख्सियत को फिर ख़ुदा शायर बनाता है


~शीबा सैफी


Glossary

शजर-tree

बसर- live/exist

मरहम-ointment

इनायत-favour

गौहर-pearl/gem

हसद-envy

कीना-malice/hatred