जिसको इन्सां भूल गया.
कुदरत का अनमोल है गहना
मिलकर जिसमें हमें है रहना
फूलों की मुस्कान है इसमें
और झर-झर झरनों का बहना
रोज़ सुबह सूरज का आना
चाँद का दूर कहीं छिप जाना
बारिश में वह शोर हवा का
फूल पे तितली का मँडराना
पँछी का गुनगान यही है
नदियों का अरमान यही है
जिसको इन्सां भूल गया है
उस रब की पहचान यही है
पर्वत की ऊँचाई देखो
सागर की गहराई देखो
'सारा' पेड़ों पर फल आना
कुदरत की सच्चाई देखो
-सारा सैफ़ी