कुदरत हर कदम साथ मेरे.

ये पंछी जो गीत गुनगुनाए जा रहे हैं,

देखो परबत भी मंद मुस्कुराए जा रहे हैं,

अटखेलियां करती ये कुदरत की माया,

हम लिख कर बयां कर सुनाए जा रहे हैं।।


ये हवाएं जो नदियों के साथ साथ चलती,

मनमर्ज़ी इनकी जब अपना रुख बदलती,

झूमती किनारों पर बेहिसाब ऐसे,

जैसे फूलों के बागों में तितलियां टहलती।।


गरमजोशी है सूरज की फैली चारों ओर,

दिशाएं जो दिखाता दुनिया के हर छोर,

दिन भर की दौड़ धूप तड़पता ये बदन,

नींद लाता ये चंदा कम करके हर शोर।।


मैं मानव हूं पेड़ो से है नाता गहरा,

बारिश को देख खिलखिलाता चेहरा,

खुशनसीब हूं जो कुदरत हर कदम साथ मेरे,

रहे कायम सदा ये झिलमिलाता पहरा।।

                               -सिद्धार्थ