ख़ामोशी है चारों ओर.
कैसा ख़ामोशी का दौर
ख़ामोशी है चारों ओर
सड़कें और बाज़ार भी चुप हैं
घर के दर-ओ-दीवार भी चुप हैं
मौन हैं मन्दिर की दीवारें
मस्जिद के मीनार भी चुप हैं
चुप हैं दालानों के शोर
ख़ामोशी है चारों ओर
मन है सबका इक उलझन में
सन्नाटा है हर आँगन में
अरमाँ भी खामोश हैं सारे
शोर है बस दिल की धड़कन में
चीख रहा है मन का शोर
ख़ामोशी है चारों ओर
मौसीक़ी और साज़ नहीं है
गीतों की आवाज़ नहीं है
ख़ौफ है हर पल मर जाने का
जीने का अन्दाज़ नहीं है
भूल गये जीने का तौर
ख़ामोशी है चारों ओर
शोर किसी की मग़रूरी में
और किसी की मशहूरी में
चुप रहना अब लाचारी है
मौन है मेरी मजबूरी में
कैसा लाचारी का दौर
ख़ामोशी है चारों ओर
~शीबा सैफी