उन्मुक्त जीवन .
दिल चाहता है आसमान में उड़ूँ बन बेफ़िक्र परिंदा डग भरूँ ना बीते कल का ज़िक्र ना आने वाले कल की फ़िक्र
बस इसी पल का अनुभव और यही पल सुखद
कोई होड़ नहीं किसी चीज़ की
तभी होते हैं पंछी बेफ़िक्र
आँखें मूँदकर फिर कुछ क्षण
मैं बन गयी एक चिड़िया
दूर उड़ी फिर आसमान में पूरे अपने पंख फैलाकर
उन्मुक्त जीवन और मैं कुछ भी नहीं खो ही गयी मैं उस गगन में झूमी नाची गुनगुनाई काफ़ी देर तक फिर आँखे नहीं खोल पाई !
- सरू जैन