उसे बहना बुलाती हूँ.
अकेले में कभी जब,
खुद को अक्सर याद करती हूँ....
मैं रोते मुस्कराते,
जिसको अक्सर याद करती हूँ....
उसे मैं बहना बुलाती हूँ।
कभी कांधे से झुक कर,
जिसके संग झूम लेती हूं....
मैं तुम्हारी खुशी में अक्सर
दुनिया घूम लेती हूँ।
उसे मैं बहना बुलाती हूँ।
न दिल का बोझ अब,
मुझसे �"र बर्दाशत होता है।
हर इक्क लफ्ज़ जहां जाकर,
हमेशा खाक होता है।
उसे मैं बहना बुलाती हूँ।
मैं दुनिया के सभी रिश्ते,
जिसके साथ जीती हूँ....
ठिठोली, प्यार, करुणा �"र
मर कर फिर मैं जीती हूँ....
उसे मैं बहना बुलाती हूँ।
--कार्तिका सिंह