वक़्त .

 


ना शिकवा ना शिकायत 

तेरे हर रंग से सहमत हूँ ऐ वक़्त

जाने किस रफ़्तार से गुज़रते रहे                     

हर लम्हे को यादों में बदलते रहे


पलों को सहेजने की कोशिश में

रेत की तरह फिसलते रहे तुम

पलों को दिनों , दिनों को महीनो में           

महीनो को सालों में बदलते रहे तुम                   


कुछ लम्हे पड़े हैं, दिल के कोने में             

चाहे तेज़ रफ़्तार से आगे चले तुम       

अतीत से वर्तमान में ना जी पाती 

अगर मरहम ना होते तुम             


समय के साथ ही चलना सीख लूँ 

यह हुनर सिखाते रहना मुझे तुम                     

तुमने वक़्त पर सिखाया मुझे सबर           

 तभी तो कुछ कुछ समझ पायी.

 

मैं इस जीवन के कुछ अर्थ                       

मैं इस जीवन के कुछ अर्थ।              

 

                              - सरू जैन