क़ुदरत सब समझाती है .
क्या पेड़ ने पत्तों के जुदा होने पर
आँसू बहाए होंगे?
कोई अपना जाता है जब छोड़कर
क्या ऐसी मूक विदाई हम
दे पाए होंगे?
काश ऐसी शांत विदाई देना
मैं भी सीख जाऊँ
पतझड़, बहार सब स्वीकार
ना इकरार ना इंकार
क्यों मन पत्ते में अटक जाता है?
वो तो सृष्टि का नियम निभाता है
जो आया है इक दिन जाएगा
कोई साथ कब तक निभाएगा?
'सरू' क़ुदरत सब समझाती है
पर हमें बात कहाँ करनी आती है?
- सरू जैन