बिछड़े पत्तों की कौन सुना करता है.
बात पेंड़ो की,शाखा की हर कोई करता है,
बिछड़े हुए पत्तों की कौन सुना करता है।।
ये जो नए हैं डाली पर शान से खड़े हैं,
कल गिर जो गए तो बेजान से पड़े हैं।।
अस्तित्व इनका है निर्भर सभी पर,
ये हवा, ये पानी, ये मिट्टी ज़मीं पर।।
निश्छल है, निर्मल है, निर्मोही काया,
एकजुटता में है असीम सी छाया।।
नापसंद कुछ चीजें हैं इनको भी जैसे,
ये पतझड़ का मौसम,हो तूफ़ान या आंधी।।
निर्ममता से टूटे हैं,ऐसे अपनों से बिछड़े हैं,
जैसे टूटते रिश्ते हैं,आज की भांति।।
है इंसान भी तो इन पत्तों के जैसा,
जो शाखा से पेड़ की जड़ तक जुड़े हैं।।
है धरती भी तो किसी पेड़ के जैसी,
जो पालन है करती,चाहे पत्ते कितने बुरे हैं।।
जो पत्ते टूट भी जाएं तो इन्हे ग़म नहीं,
इक नई शुरुआत का कारण बनेंगे।।
अगर लिख पाए 'सिद्धार्थ' तो क्या बात हो,
कि इंसान भी कभी ऐसे कारक बनेंगे।।
------ सिद्धार्थ