पत्तों पे लिखी इबारत .

पत्तों जैसे बन सकते हो क्या..! 

हवाओं से लड़ सकते हो क्या..! 

है क्या तुझमें इतनी क़ुव्वत..! 

खुशी-खुशी झड सकते हो क्या..! 

पत्तों जैसे बन सकते हो क्या..! 


इन पत्तों में इरादत भी है

पत्तों में खूब बगावत भी है

पत्तों पे लिखी इबारत भी है

पत्तों को पढ़ सकते हो क्या..! 

पत्तों जैसे बन सकते हो क्या..! 


लहराऐं तो नग्मे गाते हैं ये

दास्तां कोई नईं सुनाते हैं ये

चारागर भी बन जाते हैं ये

उपचार इन सा कर सकते हो क्या..! 

पत्तों जैसे बन सकते हो क्या..! 


कोई रिश्ता टूटे तो दर्द होता है

पत्ता शाख से टूट के ज़र्द होता है

गिरकर ज़मीं पे गर्द होता है 

इन जैसे मिट सकते हो क्या..! 

पत्तों जैसे बन सकते हो क्या..! 


पत्तों से ही शान डगर की

पत्तों से ही छांव शजर की 

राहत है थके हर राहगुज़र की 

इन सा सब्र कर सकते हो क्या..! 

पत्तों जैसे बन सकते हो क्या..! 


पता है इनको खाक है होना

नहीं आता पर इनको रोना

नहीं आता इनको धैर्य खोना

धैर्य इनसा धर सकते हो क्या..!

पत्तों जैसे बन सकते हो क्या..! 


        - - गुरवीर सियाण