पत्ते बस पत्ते होते हैं!.

पत्ते बस पत्ते होते हैं!

उग आते हैं--झड़ जाते हैं!

हरे रंग से पीले रंग तक 

रोज़ कहानी कह जाते हैं!

बात पते की कह जाते हैं!


दर्द ही सहना-पर चुप रहना;

रिश्ता एक निभा जाते हैं!

पत्ते बस पत्ते होते हैं 

बात पते की कह जाते हैं!


हर मौसम की मार को सहना,

साथ ही हर इक खार को सहना,

सब कुछ देखना पर चुप रहना!

खुद को मार के रह जाते हैं!

बात पते की  कह जाते हैं!


इक क़ुरबानी--एक कहानी-

हर पत्ता कह जाये ज़ुबानी

कौन सुने पर दर्द की बातें!

दिल को दिल की कह जाते हैं!

बात पते की कह जाते हैं!


अंतर्मन की व्यथा सुनाते,

क्या गडबड है यह समझाते,

खुद का दर्द न कह पाते हैं!

बात पते की कह जाते हैं!


कभी था रंग जवानी वाला!

अब है रंग बुढ़ापे वाला!

तेज़ हवा का ज़रा सा झोंका!

और बिछड़ के रह जाते हैं!

बात पते की कह जाते हैं!

                       --कार्तिका सिंह

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