जैसी दृष्टि, वैसी सृष्टि !.

नज़र नज़र में फर्क होता है।हर व्यक्ति का अपना नज़रिया होता है। कोई अनंत सुन्दर वस्तु में भी कमी निकाल देगा, तो कोई खाक में से भी मोती छान लेता है।यह सब मनुष्य के स्वभाव के ऊपर भी निर्भर करता है �"र मनुष्य के अनुभव पर भी। कुछ व्यक्ति ऐसी ऐसी परिस्थितियों में से गुज़रते हुऐ किसी मुकाम तक पहुंचते हैं कि वह बड़ी सुगमता से व्यक्ति के भीतर के भाव जान जाते हैं। व्यक्ति का यह दृष्टिकोण केवल व्यक्ति की भीतरी व्यथा जानने तक ही सीमित नहीं है, व्यक्ति जैसे भी विचार रखता है वैसी ही संरचना उसके जीवन होने लगती है। जो व्यक्ति सदैव सकारात्मक सोच रखता है �"र सद्विचार रखता है उसे सब अच्छा ही अच्छा मिलेगा। मैं सोचता हूँ कि किसी व्यक्ति के कैसे विचार हैं यही उसके ज़र्फ़ को दर्शाता है कि वह व्यक्ति किस योग्य है।सृष्टि में तो अच्छी चीजों की भी कमी नहीं है �"र बुरी चीजें भी मिल जाऐंगी। चुनाव हमारी नज़र �"र विचार करते हैं। 

   यदि व्यक्ति में सकारात्मकता की कमी नहीं तो उस व्यक्ति में खाक से मोती छान लेने का वस्फ है। उसे सृष्टि में कुछ बुरा लग ही नहीं सकता, उसमें ऐसे गुण उत्पन्न हो जाते हैं कि बुराई में भी कुछ न कुछ अच्छा ढूँढ ही लेगा। वे लोग उस हंस की भांति होते हैं, जो पानी में मिला दूध भी अलग करने की क्षमता रखते हैं, हंस जब पानी में अपनी चोंच डालता है तो पानी में मिले दूध की फुट्टियां बन जाती हैं �"र पानी अलग हो जाता है, हंस दूध की फुट्टियां चुग लेता है �"र पानी छोड़ देता है। अब मुझे नहीं लगता कहने को कुछ शेष बचा हो। हमें हंस के जीवन से यही सीख लेनी है कि अपना मन ऐसा बनाऐं कि सृष्टि में अच्छाई �"र बुराई के मिश्रण में से हमारी दृष्टि केवल अच्छाई ही चुने। अगर ऐसा करने में हम कामयाब हो गए,तो जीवन के रस्ते इतने सुगम हो जाऐंगे कि कोई बाधा हमारा मार्ग रोकने का प्रयास कर ही नहीं सकती। 

                                                                                                  - - गुरवीर सियाण