नये गीत भी सजेंगे .
कल फिर सुरज निकलेगा नई उम्मीदों को लेकर।
है रहना खड़े तुम्हें भी गुंजाइशों को लेकर ।
उदास सहर में भी बजेंगे सुरों से राग सारे,
नये गीत भी सजेंगे फरमाइशों को लेकर ।
ये रात जब ढलेगी घने अंधेरों को सहेजे,
उजाले भोर के मिलेंगे नई ख़्वाहिशों को लेकर।
बहका है सारा आलम बने न कोई फ़साना,
कहीं खो न जाना तुम भी नुमाइशों को लेकर।
ख़्वाब सी बनी है ज़िन्दगानी की हक़ीक़त,
ज्यों जी रहे हों हम भी सिफ़ारिशों को लेकर।
-सुमन शर्मा
९/४/२०२०