सजी हुई है ज़िन्दगी.

दीवार-ए-दुनिया में मेख की तरह,लगी हुई है ज़िंदगी। 

टांग रखा है खालीपन,फिर भी लदी हुई है ज़िन्दगी। 

दुनिया की नज़र में काफी, सजी हुई है ज़िन्दगी। 

हम क्या बताएं किस दाव पर,लगी हुई है ज़िन्दगी। 


सो रही थी कुछ ही देर से,जगी हुई है ज़िन्दगी। 

कोई देख न ले गम छुपाने,लगी हुई है ज़िन्दगी। 

छलावों से बहुत दफा,ठगी हुई है ज़िन्दगी। 

ठोकरें खा-खा के ही तो बड़ी हुई है ज़िन्दगी। 


भारी भरकम अरमानों तले दबी हुई है ज़िन्दगी। 

मेरी ही न अबतक मेरी सगी हुई है ज़िन्दगी। 

बहुत यत्न करता हूँ,खुश न कभी हुई है ज़िन्दगी। 

रुखसत होने की तैयारी में लगी हुई है ज़िन्दगी। 

 

                                         - - गुरवीर सियाण