फूल बनना चाहूं.

हां मैं एक फूल बनना चाहूं


चमन तेरे में खिलना चाहूं,

हां मैं एक फूल बनना चाहूं।


प्यार से मैं भी सींचा जाऊ,

गुलशन में तेरे मैं रहना चाहूं।


सुबह शाम जो करे रखवाली,

ऐसा सुमन मैं बनना चाहूं,

भंवरे के संग घूमना चाहूं,

खुली बगिया में झूमना चाहूं।


चले पवन जब हल्की फुल्की,

मैं भी उनमें लहराना .. बेहलाना चाहूं,

ओस की बूंदों से मैं

खुद को नहलाना चाहूं।


खुशबू को मैं कुछ यू फैलाना चाहूं,

सब के दिलो-दिमाग पर छाना चाहूं।


तोड़ा जाऊं जब भी डाली से,

बनूं माला,

मंदिर गुरुद्वारे दरगाह में जाऊ,

जब भी हो कोई शुभ घड़ी,

मैं वहां हाज़िर रहना चाहूं,

देश के शूरवीरों के सम्मान में,

मैं उन्हें चढ़ाया जाऊं।


शुभ घड़ी से लेकर,

गम की मुश्किल घड़ी में भी,

मैं हर एक का साथ निभाना चाहूं,

हां मैं एक फूल बनना चाहूं।


जब सूख जाऊं समय के प्रभाव से,

फिर मैं उसी माटी में मिलना चाहूं,

जब भी हो मेरा अगला जन्म,

मैं फिर एक फूल बनना चाहूं।

                                       - दीपक ठाकुर