किताबों के बहाने .
पन्ने खोले एक किताब के
मिला फ़ूल एक सूखा हुआ
पुरानी यादें ताज़ा हुईं
आँखें चमकी तो कभी बरसीं
उस फूल में मिले... कुछ लम्हे
कुछ जज़्बात, कुछ ख़यालात
कुछ पल बीते हुए कल के
लगा जैसे ताज़ा हों अब के
दीवानगी जगने लगी
ख़ुशी की लहर बहने लगी
मुरझाए फ़ूल से ख़ुश्बू आने लगी
दिल को महकाने लगी
लगता था जो अब एक सपना
उस क्षण लगा मुझे अपना
मिलते थे किताबों के बहाने
रोशन रहता था दिल पढ़कर
वो अक्षर जाने पहचाने...
सरू जैन