हमजोली एक किताब .
मैं थी तन्हाई की साथी मुझसे बोली एक किताब
आज सवेरे रद्दी में जब मैंने तोली एक किताब
मैंने ही बचपन में तुमको सच का ज्ञान सिखाया था
भले बुरे में अंतर क्या है मैंने तुम्हें बताया था
और ख़बर दी थी मैंने ही अपने और पराये की
सच्ची एक सहेली का मैंने फर्ज़ निभाया था
कोई नहीं था,मैं ही थी तेरी हमजोली,एक किताब
आज सवेरे रद्दी में जब मैंने तोली एक किताब
सुनो ज़रा अहसान है तुम पर मेरे इ-इक अक्षर का
काम किया है साथ तुम्हारे मैंने अच्छे रहबर का
मुझसे ही तो ज्ञान मिला अल्लाह या भगवान का भी
मैंने ही पलटा है पन्ना तेरे हसीं मुकद्दर का
और गले से मेरे लगकर कुछ पल रो ली एक किताब
आज सवेरे रद्दी में जब मैंने तोली एक किताब
~सारा सैफी