जितनी भी गुज़रे... .
मेरी ज़िन्दगी जितनी भी गुज़रे ब-कार गुज़रे
खिजाओं को खौफ हो,हर तरफ बहार गुज़रे
अपने नक्श-ए-पा छोड़ जाऊँ मंज़िल की ओर
तलाश में न ज़िन्दगी किसी की बे-करार गुज़रे
उसार दूँ हवाओं में कोई ऐसी मीनार अद्भुत
अपनी रूह से करूँ उसका फिर शृंगार अद्भुत
ऐसी मिसाल करूँ तैयार कि सब निहार गुज़रें
हो कुर्बान जब भी सामने से कोई दस्तकार गुज़रे
सर-ऐ-राह ऐसा कोई निशान छोड़ जाऊँ मैं
जज़्बों का बनाके कोई मकान छोड़ जाऊँ मैं
कोई गुज़रे यहां से ग़र तो हौंसले संवार गुज़रे
कोई भी न यहाँ से रोते हुए ज़ार-ज़ार गुज़रे
जब तलक सांस जारी है करूँ ऐसे काम मैं
अर्श की बुलंदी पर अपना लिखवा लूँ नाम मैं
मेरी हस्ती से सबके ज़हन में ऐसी पुकार गुज़रे
कोई बुजदिल भी हो खुदी पे कर ऐतबार गुज़रे
चीर डालूँ राह के दरिया भले न हो ना-खुदा
इतनी रहमतें अता करना मुझको या-खुदा
जब 'गुरवीर' हो करीब-ऐ-मर्ग,शुक्र गुज़ार गुज़रे
मेरा वो पल आखिरी, खुदा तुझे पुकार गुज़रे
- गुरवीर सिआण