लॉक डाउन.
लॉक डाउन….
बेजान सा शहर है, अनजान हुई बस्ती,
न वजूद कोई तेरा,न तेरी कोई हस्ती ।
विरान बनीं सड़कें, थीं जो साथ तेरे चलतीं,
चहुँओर परेशानी,गुम हो गयी वो मस्ती।
दिन रात की मायूसी, कहीं खो गयी है रौनक़,
बनावट की ज़िन्दगानी,हालत है तेरी ख़स्ती।
बेनूर बन गई है, तेरी सजायी दुनिया,
निभानी है सबसे दूरी,जानें बनीं हैं सस्ती ।
धूप की है रोशनाई,निखरा है पत्ता पत्ता,
लहराये पेड़ पौधे,न उन पर कोई ज़बरदस्ती ।
निश्चल है उसका आलम,अटल है उसकी रचना,
हो गयी ज़रूरी, अब उसकी सरपरस्ती ।
सुमन शर्मा
२९/४/२०२०