जन्माष्टमी / राजू जेटली 'ओम' .
कितनी जन्माष्टमियाँ आईं और चली गईं,
हे कृष्ण हे मधुसूदन तुम स्वयं कब आओगे,
कलयुग के दुर्योधनों से द्रौपदियों का कब सम्मान बचाओगे,
दुशासनों के हाथों से स्त्री अस्मिता के केशों को कब छुड़ाओगे,
बंगाल की बेटी की चीख पुकार तुम तक भी तो पहुँची होगी,
मेरा कलेजा फटा जाता है तुम पाँचजन्य कब बजाओगे,
कैसे उसने दम तोड़ा होगा कितनी उसकी काया तड़पी होगी,
मेरा धैर्य छूटा जाता है सोच सोच तुम सुदर्शन चक्र कब चलाओगे,
इन नरभक्षी भेड़ियों से धरती को कब मुक्त कराओगे,
भ्रमित हुए अर्जुनों को कब कर्म पथ दिखलाओगे,
मौन निष्क्रिय भीष्मों, द्रोणों, धृतराष्ट्रों को कब कर्तव्य बोध करवाओगे,
वचन दिया था तुमने लौटूँगा जब जब धर्म की हानि होगी,
और देर मत करना हे देवकीनन्दन वरना यशोदा, सुभद्रा, राधा को मुँह कैसे दिखलाओगे ।
*राजू जेटली “ओम”*